उठो सोने वालो

मित्रों, 'स्वाधीन' भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुडी यादों को स्मृति में बनाये रखने और उससे सबक सीखने को प्रेरित करता रहा है. इस बात को ध्यान में रखकर उसने अपने पाठकों के लिए हमेशा शब्दों का पिटारा पेश किया है. अब जब स्वतंत्रता दिवस करीब आ गया है तो इस मौके पर आज़ादी की लड़ाई से जुड़े गीतों की एक सीरीज़ पेश की जा रही है. इस कड़ी में आज दूसरे दिन वंशीधर शुक्ल का गीत 'उठो सोने वालों' स्वाधीन के पाठकों के लिए पेश है.… 


उठो सोने वालो

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वंशीधर शुक्ल

उठो सोने वालो सबेरा हुआ है
वतन के फकीरों का फेरा हुआ है
जगो तो, निराशा निशा खो रही है
सुनहरी सुपूरब दिशा हो रही है
चलो मोह की कालिमा धो रही है
न अब कौम कोई पड़ी सो रही है
तुम्हें किस लिए मोह घेरा हुआ है
उठो...
जवानो उठो कौम की जान जागो
पड़े किसलिए देश की शान जागो
तुम्हीं दीन की आस-अरमान जागो
शहीदों की सच्ची सुसंतान जागो
चलो दूर आलस-अँधेरा हुआ है
उठो...
उठो देवियो वक्त खोने न देना
कहीं फूट के बीज बोने न देना
जगें जो उन्हें फिर से सोने न देना
कभी देश-अपमान होने न देना
मुसीबत से अब तो निबेरा हुआ है
उठो...
नई कौमियत मुल्क में उग रही है
युगों बाद फिर हिंद माँ जग रही है
खुमारी लिये जान तो भग रही है
दिलों में निराली लगन लग रही है
शहीदों का फिर आज फेरा हुआ है
उठो सोने वालो...

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