कैराना का सच

विभिन्न सामजिक संगठनों के शान्ति मंडल की रिपोर्ट 
हरियाणा के साथ लगे उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल कस्बे कैराना के सांसद श्री हुकुम सिंह द्वारा 347 लोगों की लिस्ट ने न केवल उत्तरप्रदेश अपितु देश की राजनीती में एक हलचल पैदा कर दी है जिसमे उन्होंने हिन्दुओ  द्वारा मुस्लिमो के भय से कैराना से पलायन की बात कही थी । यद्यपि श्री हुकुम  सिंह ने पिछले दो दिनों में दो बार अपनी उपरोक्त बात से' यू टर्न' लिया है फिर भी उनकी असली बात क्या है उसके अलग -२अर्थ मीडिया, राजनितिक दल व जनता लगा रही है । उनकी इस बात को इन  सन्दर्भों में भी देखना होगा कि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव है तथा उसी की पूर्व तैयारी में बीजेपी की  इलाहबाद में हुई राष्ट्रिय कार्यकारणी की बैठक में इस मुद्दे को नफे नुकसान से तोल कर इसे अपने चुनावी मुद्दों में जोड़ा गया । साधारण जनता व् राजनीतिक  क्षेत्रो में भी इसे सहज व सरलता से नही लिया गया क्योकि विगत लोकसभा चुनाव में साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा मुज्ज़फरनगर में पैदा किए गए तनाव व हिंसा ने लोकसभा चुनाव में जनता को सब्जबाग दिखा कर मोदी लहर के सहारे लडे गए चुनाव में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिस कारण यूपी में लगभग तमाम सीटों पर बीजेपी ने बाजी मारी। राजनीतिक दलो का स्वार्थ अलग तरह  का हो सकता है परन्तु जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोग व जनसंगठन भी इस लड़ाई में भूमिका निर्वहन करना चाहते है इसीलिये वे भी एक जुर्रत के साथ मैदान में उतरना चाहते है। इसी भाव को लेकर दिल्ली तथा उसके आस- पास के लगभग 10 संगठनो के 22 लोगो का एक शांति दल दि0 16 जून 2016 को  कैराना पंहुचा, जिसने विभिन्न समुदायो के लगभग 800 लोगो से बात की तथा उसी आधार पर एक रिपोर्ट सादर प्रेषित है ।


कैराना -पृष्ठभूमि ,भूगौलिक व् ऐतिहासिक आंकलन                        
नव नवोदित ज़िले शामली का कस्बा कैराना, हरियाणा से लगा एक कस्बा है । बेशक ज़िले का नाम शामली है परन्तु उसका ज़िला मुख्यालय  कैराना ही है । राजधानी दिल्ली से उत्तर में मात्र 110  किलोमीटर स्थित यह क़स्बा हरियाणा के पानीपत नगर से कुल 30  कि मी0 है । वास्तव में यह उत्तर प्रदेश का हरियाणा से आते हुए प्रवेश द्वार है । कैराना की वर्तमान आबादी लगभग एक लाख है जिसमे अधिकांश मुस्लिम है । अल्पसंख्यक हिन्दू आबादी में दलित व पिछडो की संख्या अधिक है जबकि वैश्य ,जैन, ब्राह्मण बेशक चन्द संख्या तक ही सीमित है परन्तु  कुल संसाधनों पर उनका कब्ज़ा कुल हिन्दू मुस्लिम आबादी की बनिस्बत सबसे अधिक है । यमुना नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र की धरती हर तरह से सरसब्ज़ व उपजाऊ है परन्तु किसी भी तरह का उद्योग न होने की वजह से रोजगार के साधन लगभग नही के बराबर है । कैराना -कांधला-मुज्ज़फरनगर क्षेत्र के लगभग एक लाख से भी ज्यादा लोग साथ लगते पानीपत में आबाद है तथा पानीपत ग्रामीण विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक भूमिका में है। रोज़ाना, लगभग 5000 लोग पानीपत में छोटे रोजगार की तलाश में आते है । यह कस्बा तथा औद्योगिक नगर पानीपत अब एक दूसरे के पूरक है । पानीपत के विभिन्न हैंडलूम उद्योग में भी कस्बे कैराना के मज़दूर ही काम करते है तथा उनके न रहने पर हैंडलूम उद्योग के चोपट होने तक की नौबत आ जाती है।
इसका प्रमाण विगत आयोध्या में राम जन्म भूमि-- बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान देखने को मिला था जब कारखानो में काम करने वाला मुस्लिम मजदूर हिंसा के डर से पानीपत से अपने घर चला गया था जिस कारण कारखाने बन्द करने की नौबत आ गयी थी । न केवल व्यवसायिक क्षेत्र में अपितु राजनितिक क्षेत्र में भी कैराना -कांधला -मुज्ज़फरनगर से आये लोग पानीपत की राजनीति में प्रभावशाली है । नगर निकाय में महापौर सहित अनेक पार्षद कैराना व उसके आस- पास के ही है । कैराना के आस पास के गांव में गुर्जर जाति के लोग बहुसंख्या में है जो  हिन्दू भी है और मुस्लमान भी । बेशक उनके  बीच  रोटी -बेटी का रिश्ता न हो परन्तु उनके गोत्र एक है तथा वे स्वयं को एक ही पूर्वजो की संतान मानते है । कस्बा कैराना में मुस्लिम आबादी में भी गुर्जर,अंसारी ,लोहार ,गाडे, राव, पठान  ज्यादा संख्या में है।

वर्तमान समस्या
कैराना की वर्तमान समस्या, श्री हुकुम सिंह, सांसद का वह बयान है जिसमे भयग्रस्त हिंदुओ का कैराना से पलायन की बात कही है । उनके द्वारा जारी करदा लिस्ट में अधिकांश लोग स्वर्ण जातियो के ही है । प्रशासन व शासन ने इस लिस्ट को एक सिरे से ख़ारिज किया है तथा तथ्यों का हवाला देकर कहा है कि इसमें उन लोगो के नाम शामिल है जो कईं साल पहले अपने  व्यापार के सिलसिले में बाहर चले गए थे । इस लिस्ट में कुछ मृतको के नाम भी है । परन्तु कुछ भी कहो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के बयान, एक टी वी चैनल द्वारा बार बार प्रसारित पलायन को लेकर प्रकाशित खबरों, रिपोर्ट्स व साक्षात्कार ने मामले को गरमा दिया है । बीजेपी के ही एक् अन्य नेता श्री संगीत सोम की यात्रा की घोषणा ने आग में घी डालने का काम किया है और इसके साथ- २ विभिन्न राजनेताओ ,सामाजिक कार्यकर्ताओ द्वारा नित्यप्रति कैराना आगमन ने कस्बे को सुर्ख़ियो में ला दिया है । कस्बे में कही भी घूमने से कही भी अहसास नही होता कि कही कोई गड़बड़ है परन्तु कुरेदने पर कुछ और ही आवाजे सुनाई देती है जो न केवल अप्रिय ही नही अपितु डरावनी भी है ।

राजनीतिक परिपेक्ष्य  
कैराना -शामली साथ साथ लगते दो कस्बे है । कैराना मुस्लिम बाहुल्य व शामली  हिन्दू बाहुल्य । परन्तु इन दोनों की खासियत यह है कि यहाँ कभी भी साम्प्रदायिक दंगा तो छोड़ो कभी तनाव भी नही हुआ। हाँ तब भी नही जब भारत विभाजन का दौर था या अयोध्या में मन्दिर -मस्जिद विवाद । यह  क्षेत्र पूर्व प्रधान मंत्री चो0 चरण सिंह का गढ़ माना जाता रहा है ।  कैराना-बागपत -मुज़फ्फरनगर एक समय में लोकसभा का एक ही क्षेत्र था उस समय स्वयं  चो0 चरण सिंह, उनकी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी इस क्षेत्र की प्रतिनिधि रही । एक बार बीजेपी के वर्तमान सांसद श्री हुकुम सिंह, कांग्रेस से लोकसभा के सदस्य रहे तथा अनेक बार मुस्लिम गुर्जर नेता श्री मुनवर राणा , कभी लोकदल से व कभी समाजवादी पार्टी से लोकसभा में प्रतिनिधि रहे । श्रीं हुकुम सिंह अब बीजेपी से लोकसभा के सदस्य है । ऐसी चर्चा है कि वे अपनी बेटी को अपने उत्तराधिकारी  के रूप में उतारना चाहते है, किसी को एतराज होना भी नही चाहिए क्योंकि अक्सर राजनेता ऐसा ही कर रहे है । यू पी में विधानसभा चुनाव अगले वर्ष है तथा उनकी बेटी कैराना विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की सम्भावित प्रत्याशी है । इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,95,000 वोटर है जिसमे हिन्दू -मुस्लिम वोटर्स की संख्या बराबर- बराबर है । ऐसा कहना है कि श्री हुकुम सिंह ने अपनी बेटी के लिए   चुनावी तैयारी शुरू कर दी है ।एक पारंगत राजनेता की तरह वे बूथ मैनेजमेंट से भी वाकिफ है, इसे सर्वे के दौरान उन्हें वोटर लिस्ट में छपे कुछ लोग लापता पाये और उन्होंने उसी आधार पर यह लिस्ट  जारी कर दी । जानकार लोगो का कहना है कि श्री हुकुम  सिंह यह नही जानते थे कि मामला यहाँ तक तूल पकड़ेगा । इसीलिये वे कभी 'हाँ' कभी 'नहीं'  करते है । पर कुछ भी कहे ऐसा तनाव कई राजनीतिक दलो को माफिक आ रहा है । परन्तु ऐसा कह देना मुद्दे का सरलीकरण करना है। ऐसा लगता है कि यह काम एक सोची समझी साम्प्रदायिक योजना के तहत किया गया है।        

सामाजिक तानाबाना
कैराना का सामाजिक तानाबाना अद्भुत है । इस इलाके में  गुर्जर हिन्दू व मुस्लमान दोनों है । कई परिवारो में एक भाई हिन्दू है तो दूसरा मुस्लमान । गुर्जर एकता के नाम पर दोनों एक है परन्तु मजहब की बात आये तो अलग । 'हुक्का'यहाँ की सामूहिकता का द्योतक है जिसे मिल कर पीने में दोनों को कोई गुरेज नही । अधिकांश बाजार पर हिन्दू व्यापारियो का कब्ज़ा है पर उन्ही की दुकानों के आगे छोटी रेहरिया मुस्लमान मजदूरो की है । कस्बे में अधिकांश डॉक्टर हिन्दू है पर उनके मरीज  मुस्लिम ,हक़ीम मुस्लिम है पर मरीज हिन्दू । हिंदू सुनारों की दुकान पर बुर्कानशी मुस्लिम औरतो के जमघट्टे लगे रहते है । कचहरी में कुल वकीलो में लगभग 90 % हिन्दू है पर उनके मोवकिल मुस्लिम है । आज भी परम्परागत काम करने वाले लुहार, मोची, कुम्हार, रंगरेज, बिसाती दोनों समुदायो में है व इनके ग्राहक भी सभी तरह के लोग है । इस छोटे कस्बे के मुख्य चौक पर महात्मा गांधी, नेता जी सुभाष व प0 नेहरू के स्थानीय कारीगरों द्वारा रेत सीमेंट से बनी मुर्तिया लगी है पर शायद अब उनके पैरोकार नही बचे । शादी ब्याह, मरने जीने में दोनों समुदायो के एक ही रीति रिवाज एक है व इन मौको पर सब का एक दूसरे के आना जाना भी है । नाई, तेली, कहार, कुम्हार दोनों समुदायो में है पर सफाई का काम बाल्मीकि समुदायो के लोग ही दोनों के करते है । कस्बे में ब्राह्मण, महाजन, सैनी, कश्यप, गुर्जर लोग मिले जुले रहते है यहां तक मुस्लिमों के साथ भी पर बाल्मीकि, खटीक, चमार व अन्य दलितों के पृथक मोहल्ले है तथा उनके मोहल्लों में ही उनके मन्दिर है, चौपाल है तथा मोहल्ले के बाहर सुरक्षा के लिए गेट भी लगाया गया है जो हर समय खुला नही रहता । पिछले डेढ़ दो बरसो से ही इन सामाजिक रूप से अस्पृश्य जातियो को प्रोत्साहित  व सामाजिक आर्थिक मदद करने  का काम अब सवर्ण  हिन्दू करने लगे है  ।।                   

सांस्कृतिक व शैक्षणिक विरासत
कैराना, सांस्कृतिक रूप से काफी विकसित रहा है । यहाँ के नवाबो ने संगीत, नृत्य व गायन के क्षेत्र में इसे उचाइयां देने का काम  किया परन्तु अब यह सब यहां इतिहास की स्मृतियां बन गयी है । क़स्बे में अनेक स्कूल है जिनकी ज्यादातर मैनेजमेंट हिन्दू संस्थाओ के पास है पर आबादी के अनुसार विद्यार्थी ज्यादातर मुस्लिम है । लड़कियो के स्कूलो में लड़को या सहशिक्षा स्कूलो के मुकाबले ज्यादा संख्या है । न केवल मुस्लिम बल्कि दलित बालिकाएं भी इन सभी स्कूलो में अच्छी व उच्च  शिक्षा प्राप्त कर रही है और प्रबन्धन भी एक से बढकर एक नई तकनीक व विधा इन संस्थानों में ला रहा है ।

कानून व्यवस्था का प्रश्न
हम एक लाइन में कह दे कि कानून व्यवस्था बिलकुल नदारद है ऐसा बिलकुल नही है परन्तु इस पर राजनीति , माफिया व उच्च वर्गो का प्रभाव है । गुंडा तत्वों को बकायदा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है तथा उसी शह पर वे अपनी मन मर्जी करते है ।अपराध दर हमेशा ज्यादा रही है।  लोगो का ऐसा मानना है कि नाजायज असलाह आम घरों में सुरक्षा के नाम पर जमा है । हिन्दू और मुस्लमान दोनों ही अपराधिक तत्वों के भुक्तभोगी रहे हैं हालांकि हिन्दू व्यापारी उसके सबसे बड़े भुक्तभोगी रहे हैं क्योंकि कस्बे के ज्यादातर सम्पन्न व्यापारी हिन्दू ही हैं। कई केसेज़ में कई सालो से जेलो में बन्द अपराधी मुकीम काला और फुरकान गैंग वही से फिरोती व रंगदारी वसूलने  का काम कर रहे है, कुछ हिन्दू दुकानदारों की शिकायत है कि ये गैंग मुस्लिम दुकानदारों से उगाही नहीं करते।  हर किसी ने 2 साल पहले धनउगाही के लिए हुए दोहरे हत्याकांड का ज़िक्र किया। धमिकयां मिलने पर प्रशासन ने 5 पीड़ितों को गनर भी मुहैय्या करवाए। 8 माह बाद जब गनर हटा लिए गए तो इन 5 में से 2 लोगों की हत्या कर दी गयी। यह दल इनमें से एक पीड़ित परिवार से भी मिला जिन्हें धमकी दी गयी थी। हिन्दू और मुस्लिम दुकानदारों के बीच आपसी विश्वास का अभाव दिखा। अपराधियो के राजनीतिक संरक्षण प्राप्त गैंग भी है जो पृथक-२ हिन्दू व मुसलमान सरगनाओं के भी है जिनके सदस्य अलग- अलग समुदायो के लोग है यानि यानि मुस्लिम सरगना के गैंग में हिन्दू भी है व हिंदू सरगना गैंग में मुस्लिम भी । आपराधिक तत्वों द्वारा उस समय 3 हिन्दू व्यापारियों का कत्ल हुआ तो उसी समय आसपास के 11 मुसलमानों का भी कत्ल हुआ जिसमें दो मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार व हत्या भी हुई। व्यापारी व अन्य समृद्ध तबका इनसे खुश तो नही परन्तु अपने संरक्षक के रूप में इन्हें स्वीकार कर चूका है । हां एक दो बार विशेष अपराधी घटना होने पर सभी समुदायो के लोगो ने सामूहिक विरोध भी किया पर बाजार भी कई दिनों तक बन्द रखा पर इसके इलावा कोई कार्यवाही नही । दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर कभी कोई सामूहिकता नही आई  इस पर उनका मानना है कि उनकी तो 'बहन जी' (बहन मायावती ) के राज में तो सुनवाई होती है वरना नही । आम जन का भी मानना है कि बहन जी के राज में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर रहती है । यदि उत्तर प्रदेश के परिपेक्ष्य में कहा जाए तो कैराना क्षेत्र में भी कानून व्यवस्था कमोबेश वैसी ही स्थिति है जैसे जैसे प्रदेश के अन्य ज़िलों में। यहां यह ज़िक्र करना जरूरी होगा कि क्षेत्र के वर्तमान सांसद श्री हुकुम सिंह जी की पत्नी का कत्ल कई वर्ष पूर्व उनके ही नौकरो ने कर दिया था जब वे मुज्ज़फरनगर में रहते थे परन्तु इस वारदात के बाद  उन्होंने अपने परिवार को  कैराना को सुरक्षित स्थान मान कर यही स्थानांतरित कर दिया था तब से वे यही बिना किसी विशेष सुरक्षा के सकुशल रह रहे है । ऐसे ही अनेक प्रभावशाली समृद्ध हिन्दू, कस्बे की बाहर नव निर्मित बस्तियों में रह रहे है ।

मूल समस्या का प्रभाव
कैराना में कोई उद्योग नही है ,दोनों समुदायो के  दलितों - पिछड़ों के पास जमीन व कमाई के अन्य संसाधनों की कमी है । छोटा काम करके कस्बे में कस्बे में गुजरा नही चलाया जा सकता ।  निरक्षर व कम शिक्षा ने उनके रास्ते काफी सीमित कर दिए है  । घर में रोजगार न होने के कारण तंगहाली के हालात है ।अब विकल्प पानीपत या शामली ही है । पानीपत में ज्यादा सम्भावनाये है इसीलिए यहां का अधिकांश युवा, दिन उगते ही मेहनत - मजूरी के लिए पानीपत अथवा शामली  के लिए निकल पड़ता है जहाँ लाला की कम मजदूरी की शर्तों पर काम करने को मजबूर होता है । बेरोजगार व गरीबी की हताशा ही उसे अपराध में भी धकेलती है । दोनों समुदायो का समृद्ध वर्ग भी  उन्हें इस स्थिति में रखना अपने हित में मानता है ताकि सस्ते दाम की मजदूरी में वह उनके न केवल काम को करे बल्कि सुरक्षा कवच भी बने । अफ़सोस की बात है कि यू पी की विगत अनेक पार्टियो की सरकारो ने इस क्षेत्र में स्वस्थ रोजगार के अवसर जुटाने  के लिये कोई काम नही किया जिस कारण वर्तमान स्थितियां उपजी है। कस्बे में बुनियादी सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का अभाव है, बिजली आपूर्ति पूरी तरह चरमराई हुई है; इसलिए भी लोग कैराना में नहीं रहना चाहते।

साम्प्रदायिक द्वेष अथवा तनाव
क्षेत्र में साम्प्रदायिक  विघटन,तनाव व द्वेष की बात को एक सिरे से ख़ारिज नही किया जा सकता । मुज्ज़फरनगर की विगत साम्प्रदायिक घटनाओ के बाद अनेक मुस्लिम परिवार गांव छोड़ने को मजबूर हुए, काफी समय तक तो वे मुज्ज़फरनगर के पास ही अस्थायी व्यवस्था करके रहने लगे बाद में सरकार के प्रोत्साहन से कैराना के वर्तमान विधायक श्री मुनवर हसन ने उन्हें अपनी 20 बीघा जमीन में  रहने को मकान आदि बना कर दिए । यह बेशक एक अच्छा कदम था परन्तु उनकी संख्या ने मुस्लिम आबादी का अनुपात भी बढ़ा दिया जिससे हिन्दू संगठनो के प्रचार व अफवाहों से हिन्दुओ में असुरक्षा की भावनाए भी बढ़ने लगी । मुस्लिम संगठनों की ज्यादा ही आवाजाही ने और  ज्यादा आग में घी डालने का काम किया । विस्थापितों की मदद के नाम पर युवको में रोजगार नदारद थे व बच्चों की शिक्षा के नाम पर भी सिर्फ संगठनो द्वारा संचालित मदरसे ही थे । मुज़्ज़फरनगर दंगो के बाद जो  धुर्वीकरण उपजा था उससे कैराना कैसे अछूता रहता परिणाम स्वरूप दोनों तरफ के साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा हिन्दू को 'संघी हिन्दू' तथा  मुसलमान को 'समाजवादी मुसलमान' के रूप में विभाजित/ प्रचारित करने की कोशिशें जारी हैं। और बाद में नेताओ के साम्प्रदायिक क्रियाकलापो ने इस खाई को और गहरा करने का काम किया है । बाहरी तौर पर सब नार्मल है परन्तु अंदर खन्दक खुदी हुई है । और यह बात राजनीतिक दलो के माफिक है इसलिये वे इसे चलते रहने देना चाहते है ।।                              

दलित -पिछडो की स्थिति
भारतीय हिन्दू समाज की यह  शोचनीय स्थिति है कि जब वह हिन्दू की बात करता है तो उसका लक्ष्य सिर्फ स्वर्ण अथवा व्यापारी वर्ग से ही होता है परन्तु समाज की  बड़ी आबादी दलित व पिछड़े है जो सामाजिक ,आर्थिक व् शैक्षणिक रूप से उपेक्षित है तथा उनमें सम्पन्न तबकों की अपेक्षा आपसी सौहार्द ज्यादा है । परन्तु हिन्दू संगठनो व दलो की वर्तमान योजना अथवा कार्यप्रणाली  के अनुसार उन्हें साथ जोड़ने का काम शुरू हुआ है । बराबरी के आधार पर नही इस्तेमाल करने के लिए । इन्हें उनके  गौरव का आभास करवा कर जो कभी न था, तैयार किया जा रहा है । याद रहे सन् 2002 में गुजरात नरसंहार के दौरान भी  मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो में मुस्लिम लोगो के कत्लो गारत का काम भी आदिवासियों व अन्य कमजोर वर्गो के  लोगो के द्वारा ही करवाया गया था, ऐसा ही 'गुजरात प्रयोग 'यहाँ  दोहराया जा सकता है । मुस्लिम समुदाय समाज के इन मजबूत हिस्से से सम्पर्क व सम्बन्ध बनाने में पूरी तरह से नाकामयाब है, इसलिए अतिदलितों की भी वही भाषा है जो उसे टीवी चैनल्स या हिन्दू संगठनो ने सिखाई है । यदि मुस्लिम -दलित -पिछड़े सम्बन्धो को सामान्य बनाने का प्रयास नही किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते है । क्योकि ये बोलना जानते है तथा स्वर्ण संघी हिन्दू इन्हें बुलवाना व काम लेना।एक अन्य पहलू राजनीतिक स्तर पर भी देखा जाना चाहिए कि हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक ताकतें जहाँ उच्च जातीय हिंदुओं में अपना गहरा आधार पैठ करने में कामयाब हुई है वहीँ आर्थिक, सामजिक, शैक्षिक रूप से सबसे ज्यादा पिछड़ी दलित वाल्मीकि जाति में भी अपना आधार गहरा किया है। दलितों का यह राजनितिक विभाजन बड़ा खतरनाक कदम है जिसके गम्भीर दुष्परिणाम होंगे। जहाँ चमार समुदाय बसपा के साथ है तो चमार समुदाय को समझना होगा कि दलितों के बाकी हिस्सों को साथ लिए वह अपनी मुक्ति की लड़ाई नहीं लड़ सकता। मुस्लिम समुदाय को भी दलितों में घर कर चुकी असुरक्षा व अलगाव की भावना को दूर करने की कोशिश करने की जरूरत है।      

साम्प्रदायिक दलो की स्थिति
साम्प्रदायिक तत्व आजकल इस  क्षेत्र में पुरे उन्माद में है  । समाचार पत्र विशेषकर इस इलाके में सबसे ज्यादा बिकने वाला व पढे जाने वाला अख़बार 'दैनिक जागरण' मामले में खुल कर उनके साथ है। रोजाना नए- २ प्रतिनिधिमण्डल आ रहे है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पूरी टीम वहाँ मौजूद है जो कुछ हो तो उसकी तुरन्त सुचना देना चाहती है । बीजेपी नेता संगीत सोम का सरधना से कैराना तक का मार्च उसी सोची समझी नीति का एक हिस्सा है । उनके दोनों  हाथो में लड्डू है ,उन्हें रोका तो भी सफलता ,हो गया तो भी।  मार्च का दिन भी शुक्रवार का तय किया है ताकि रमजान में जुमा नमाज के अवसर पर काफी संख्या में मस्जिदों में इकट्ठे लोगो को उकसाया जा सके और ऐसे एक भी कंकड़ फेंक दी तो हो गया काम शुरू। शांतिदल को प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियो ने बेशक आश्वस्त किया है कि वे मुस्तैद रहेंगे फिर भी यह यही तो खत्म नही होने वाला । एक के बाद एक मार्च, जलसे ,जुलुस आने वाले है । ओवैसी साहब भी पूरी ताक में है कि कब मामला गर्म हो और वे वहाँ पहुचे, उनके भी लोग वहाँ 'वेट एण्ड वॉच'कर रहे है ,ऐसा लोगो से बात करके जानकारी से मिला ।   

धर्म निरपेक्ष दलो की स्थिति   
सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ऐसी स्थिति को अपने अनुरूप मान कर चल रहे है । उनके भी दोनों हाथो में लड्डू है। हालात काबू रहे तो उनकी कामयाबी नही रहे तो एक ध्रुव के तो वे भी स्थापित नेता है । वैसे मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव् बेशक बयान बजी करते रहे हो परन्तु सपा के स्थानीय वर्तमान विधायक श्री मुनव्वर राणा, पूरे घटनाक्रम से गायब है । बहन मायावती जी की बहुजन समाज पार्टी उभार की स्थिति में दिखती है ।दलित उनके साथ है, आम नागरिक का मानना है कि उनके राज में गुंडा तत्वों को अपेक्षाकृत लगाम रहती है और मुस्लिम समुदाय का भी उनकी तरफ रुझान है और यदि यह समीकरण बना रहा तो बाजी पलट सकती है । कांग्रेस न केवल संगठन की  दृष्टि से अपितु राजनितिक रूप से अपेक्षाकृत काफी कमजोर है  ऐसा भी तब है जब गांव गांव, गली- मोहल्लों में  गांधी -नेहरू -इंदिरा जी के प्रशंसको की संख्या कम न है परन्तु संगठन व् कार्यक्रमों के न रहते सब ज़ीरो है । एक समय था चुनाव हारने के बाद इसी कैराना कस्बे से 1978 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने यूपी विजय की शुरुआत की थी व तब यहाँ के लोगो ने दिलखोल कर उनका समर्थन किया था। वामपंथी दल पूरी तरह से हाशिये पर है । फिर याद करते है इसी कैराना-शामली-मुज्ज़फरनगर संयुक्त क्षेत्र से भारतीय  कम्युनिस्ट पार्टी के उमीदवार कॉम0 विजय पाल ने क्षेत्र के कद्दावर नेता चो0 चरण सिंह को 1971 के लोकसभा चुनाव में पराजित किया था । बेशक उद्योगिक  कारखाने इलाके में नही है पर किसानो में सीपीआई/सीपीएम सहित अन्य वाम दलो की अच्छी पैठ थी पर अब वे पार्टी इतिहास के पन्नों पर ही दर्ज है । इलाके के लगभग हर गांव में वाम विद्यार्थी संगठनो के पूर्व कार्यकर्ता मौजूद है पर निष्क्रिय है । चौ0 चरण सिंह के बाद उनके वारिस चौ0 अजीत सिंह का एक समय में इस पुरे इलाके पर दबदबा था पर अब वह पश्चिम उत्तर प्रदेश की बजाय कुछ पॉकेट्स पर ही है वैसे भी वे किस का दामन पकड़ेंगे वह अभी कहने से बाहर है ।

सामाजिक संगठनो की भूमिका 
इस पुरे घटनाक्रम में स्वयंसेवी संगठनों तथा सामाजिक संस्थाओं की  भूमिका बन सकती है यदि वे इसे किसी अनुदान प्राप्त प्रोजेक्ट का हिस्सा न बनाये । राष्ट्रीय एकता व सदभाव के लिए कार्य यहाँ की एक जरूरत है जिसे करने का काम अविलम्ब यहां शुरू होना चाहिए । गांधी सेवको ,रचनात्मक व् खादी कार्यकर्ताओ  को इस मैदान में उतरना होगा । दलितों के बीच काम करने वाली गांधी जी द्वारा बनाई संस्था हरिजन सेवक संघ भी काम को सरंजाम दे सकती है । पूर्ण रोजगार ,गरीबी  व निरक्षरता  उन्मूलन के प्रश्नो के हल करने के आंदोलन को खड़ा करना होगा । सर्वधर्म  समभाव व राष्ट्रिय एकता के कार्यक्रम आयोजित करने होंगे ताकि लोग किन्ही  बहकावो में न आ कर स्वस्थ- धारा में शामिल हो ।          

कार्य के बिंदू
* दलित ,पिछडो व  अन्य  कमजोर वर्गो के विश्वास अर्जन के लिए संवाद, बैठको का आयोजन।                       
* मुस्लिम व अन्य वर्गो में परस्पर संवाद की स्थिति बनाना व आपसी विश्वास पैदा करना।                            
* सूफी संगीत, मीरा भजन, रविदास वाणी के सम्मिलित कार्यक्रम आयोजित करना जिससे समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने में मदद मिले।                                          
* सर्व धर्म समभाव व राष्ट्रिय एकता के लिए साँझा संस्कृति -साँझा विरासत की भावना पैदा करना।               
* प्रशासन के साथ मिलकर मैला धोने वाले लोगों की हालत में सुधर व सम्मानजनक पुनर्वास के कार्यक्रम। 
* क्षेत्र के सभी राष्ट्र भक्त ,धर्म निरपेक्ष व शांतिप्रिय लोगो की एकता स्थापित करने के प्रयास।                               * विद्यार्थियो व खास कर युवाओ के बीच शिविरो ,कार्यशालाओं का आयोजन।                                       
* महिलाओ के बीच जन जागरण अभियान चलाना।                             
* प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया को सक्रिय करना।                               
* जनता के बीच कार्यकर्ताओ का हमेशा बने रहना।                        

भविष्य की योजना                            
* ऐसे समझदार लोग जिनका नाम एक साजिशन हुकुम सिंह की रिपोर्ट में दिया गया है और जो इस साज़िश का पर्दाफाश करने के लिए तैयार हैं; उनकी पहचान कर विभिन्न माध्यमों( धरातल पर व शोसल मीडिया) से इस साज़िश का भंडाफोड़ करना।       
* शांति दल के सदस्य एक शांति सेवक के रूप में कार्य करे यानि एक शांत ,सहिष्णु ,अनुशासित व  विनम्र कार्यकर्ता के रूप में । वह अपने -2 ढंग से क्षेत्र में काम करेगा तथा वहाँ के लोगो से निरन्तर सम्पर्क में रहेगा । विभाजन की इन कोशिशों को अगर समय रहते न रोक गया तो जल्द ही यह साम्प्रदायिक रूप ले लेगा इसमें कोई शक नहीं। कैराना के निकट के इलाको खासतौर से पानीपत के साथियो का दायित्व ज्यादा बनता है कि  वे इस कार्य को मुस्तैदी से करे । हमारे पास संसाधनों की बेहद कमी है परन्तु अपने स्तर पर जितना भी बन पायेगा हम इस काम को करना चाहेंगे  । यह हमारा राष्ट्रीय दायित्व है तथा वक्त की जरूरत भी ।    

राम मोहन राय (संयोजक शांति दल एवं एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)                    
विपिन कुमार त्रिपाठी (सद्भाव मिशन ) 
मणिमाला (पूर्व निदेशक गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति)                                          
रमेश चंद्र पुहाल (हाली पानीपती ट्रस्ट)                                                     
पुष्पेन्द्र शर्मा (हिन्द मजदूर सभा )                      
सैयद तहसीन अहमद (ऑल इंडिया मज़लिस ए मुशावरत )                                
खदीजा फ़ारूक़ी    
एन डी पंचोली (सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी )                 
दीपक कथूरिया  (भगत सिंह से दोस्ती मंच )                      
धीरज गाबा               
दीपक कुमार  (जेएनयू)                       
सौरभ बाजपेयी (नैशनल मूवमेंट फ्रंट)          
राहुल पांडे (नैशनल मूवमेंट फ्रंट)                       
साकिब सलीम (नैशनल मूवमेंट फ्रंट)                
शशिभूषण  (नैशनल मूवमेंट फ्रंट)                                  
कृपाल सिंह  (खुदाई खिदमतगार  )     
सरफराज हामिद  (जेएनयू )                                   
डॉ. शंकर लाल शर्मा   (सद्भावना मंच)                               
फैसल खान  (खुदाई खिदमतगार  )          
संजय कुमार (ब्रेकथ्रू  )                                 
यामीन मलिक (जनाधिकार संघर्ष मंच )

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