बाल दिवस 2017: कैफ़ी आज़मी की शायरी में जवाहरलाल नेहरू


कैफ़ी वामपंथी और नेहरू सरकार के मुख्य विरोधी थे. इसके बावजूद भी ये सब नेहरू की तारीफ करने से अगर खुद को नहीं रोक सके तो ये नेहरू के व्यक्तित्व का ही कमाल है

Saqib Salim Nov 14, 2017

साकिब सलीम

बाल दिवस 2017: कैफ़ी आज़मी की शायरी में जवाहरलाल नेहरू

मैंने तन्हा कभी उसको देखा नहीं, फिर भी जब उसको देखा वो तन्हा मिला...

कैफ़ी आज़मी के पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए लिखे ये बोल अपने आप में वो सब कुछ कह देते हैं जो कि हम नेहरू जी के बारे में जान सकते हैं. सच ही तो है कि हमेशा अपने चाहने वालों से घिरे रहने वाले नेहरू भीड़ से अलग एक पहचान रखते थे.

नेहरू के लिए कैफी और साहिर सरीखे शायर लिखते थे गीत

आज जबकि हमारे नेता घोटालों के लिए और तानाशाही अंदाज़ के लिए पहचाने जाते हैं, ये सोचना भी मुश्किल है कि कभी एक ऐसा नेता था जिसकी मुहब्बत में कैफ़ी, साहिर सरीखे शायर गीत लिखते थे. यहां ये याद रखना भी जरूरी है कि कैफ़ी, साहिर आदि वामपंथी थे जो कि उस समय नेहरू सरकार के मुख्य विरोधी थे. इसके बावजूद भी ये सब नेहरू की तारीफ करने से अगर खुद को नहीं रोक सके तो ये नेहरू के व्यक्तित्व का ही कमाल है.

वैसे तो अनेक शायरों ने अनेक गीत, नज़्म आदि कहें हैं नेहरू के लिए, पर यहां केवल कैफ़ी के गीतों का ही उल्लेख कर रहा हूं.

नेहरू पर लिखा यह गीत फिल्म नौनिहाल में किया गया था शामिल

सबसे महत्वपूर्ण कैफ़ी का लिखा गीत ‘मेरी आवाज़ सुनो’ है. ये गीत 1965 की फ़िल्म नौनिहाल में शामिल भी किया गया था. इस गीत को फिल्म में मदन मोहन के संगीत के साथ मोहम्मद रफ़ी ने गाया है.

नेहरू के प्रति भारतवासियों के प्रेम को दर्शाती है फिल्म

वैसे नौनिहाल खुद में नेहरू के प्रति भारतवासियों के प्रेम को दर्शाती है. इस फिल्म में एक बच्चा जो कि अनाथ है, ये बताए जाने पर कि वो दुनिया में अकेला नहीं है और उसके भी एक चाचा हैं, चाचा नेहरू, उनसे मिलने को निकल पड़ता है. ढेर सारी परेशानियों का सामना करके आखिर जब वो नेहरू से, अपने चाचा से, मिलने जाने वाला होता है तो तब ही ये खबर आती है कि नेहरू अब इस दुनिया में नहीं रहे.

महात्मा गांधी के साथ जवाहरलाल नेहरू [फोटो: विकिकॉमन]
महात्मा गांधी के साथ जवाहरलाल नेहरू [फोटो: विकिकॉमन]

आंखों में आंसू ला देने वाला गीत लिखा था कैफी ने

बड़े ही खूबसूरत अंदाज में फिल्माए गए इस गीत में नेहरू की अंतिम यात्रा में रोते बिलखते भारतवासियों की तस्वीरें हैं. परंतु जो बोल कैफ़ी ने लिखे हैं वो एक तरफ तो आंखों में आंसू ला देते हैं वहीं दूसरी ओर एक उम्मीद की किरण भी देते हैं कि नेहरू एक रास्ता दिखाकर गए हैं और उस पर हमें और आगे बढ़ना है.
कैफ़ी लिखते हैं;

'मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो
मैंने इक फूल जो सीने पे सजा रखा था उसके पर्दे में तुम्हे दिल से लगा रखा था था जुदा सब से मेरे इश्क़ का अंदाज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो
ज़िन्दगी भर मुझे नफ़रत सी रही अश्कों से मेरे ख़्वाबों को तुम अश्कों में डुबोते क्यों हो जो मेरी तरह जिया करते हैं कब मरते हैं थक गया हूं, मुझे सो लेने दो, रोते क्यों हो सोके भी जागते ही रहते हैं, जांबाज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो
मेरी दुनिया में ना पूरब है ना पश्चिम कोई
सारे इंसान सिमट आए खुली बाहों में कल भटकता था मैं जिन राहों में तन्हा तन्हा काफ़िले कितने मिले आज उन्हीं राहों में और सब निकले मेरे हमदर्द मेरे हमराज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो नौनिहाल आते हैं अर्थी को किनारे कर लो मैं जहां था इन्हें जाना है वहां से आगे
आसमां इनका ज़मीं इनकी ज़माना इनका हैं कई इनके जहां मेरे जहां से आगे इन्हें कलियां ना कहो, हैं ये चमनसाज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो क्यों संवारी है ये चन्दन की चिता मेरे लिए मैं कोई जिस्म नहीं हूं के जलाओगे मुझे राख के साथ बिखर जाऊंगा मैं दुनिया में तुम जहां खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे हर कदम पर हैं नए मोड़ का आग़ाज़ सुनो मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज़ सुनो'

नेहरू कोई जिस्म नहीं एक सोच थे

कैफ़ी अपने गीत से ये दर्शा रहे हैं कि नेहरू कोई आम मनुष्य का नाम नहीं था कि जिसको मौत आ जाएगी, ये तो एक सोच थी. ये कोई जिस्म नहीं कि जला दिया जाए, वे तो जब भी हम मुसीबत में होंगे तो अपनी जिंदगी की सीख से हमें रास्ता दिखाएंगे.

नेहरू के लिए बच्चे कलियां नहीं चमन-साज हैं

कैफी बच्चों के लिए नेहरू के प्रेम पर भी काफी साफगोई से लिखते हैं. उनके लिए वे कलियां नहीं हैं, जो कल को बड़े होकर फूल बनेंगे. वो तो चमन-साज हैं, उन्हीं से तो हमारा समाज सजता है, वो अभिन्न अंग हैं. आज से 50 बरस पहले ये कहना काफी क्रांतिकारी भी है कि बच्चों को हम समाज में बराबरी पर रख कर सोचें.

Tibetan spiritual leader the Dalai Lama and Indian Prime Minister Jawaharlal Nehru (1889 - 1964) in New Delhi where they are meeting to discuss the rehabilitation of Tibetans who crossed the border to India during the Chinese/Tibetan crisis. Original Publication: People Disc - HD0039 (Photo by Central Press/Getty Images)
Tibetan spiritual leader the Dalai Lama and Indian Prime Minister Jawaharlal Nehru (1889 - 1964) in New Delhi where they are meeting to discuss the rehabilitation of Tibetans who crossed the border to India during the Chinese/Tibetan crisis. Original Publication: People Disc - HD0039 (Photo by Central Press/Getty Images)

नेहरू पर कैफी का लिखा यह गीत किसी फिल्म का हिस्सा नहीं

गीत में नेहरू की वसीयत के उस हिस्से की ओर भी इशारा है जिसके अनुसार उनकी अस्थियां भारतीय वायुसेना के जहाज़ से भारत पर बरसा दी गईं थीं, और इसके साथ वो उस मिट्टी में मिल गए जिस से वो बेहद मुहब्बत करते थे. कैफ़ी की ही एक और नज़्म का उल्लेख भी जरूरी है जिसे कम लोगों ने सुना है क्योंकि वो किसी फिल्म का हिस्सा नहीं है.

'मैंने तन्हा कभी उस को देखा नहीं फिर भी जब उस को देखा वो तन्हा मिला जैसे सहरा में चश्मा कहीं या समुंदर में मीनार-ए-नूर या कोई फ़िक्र-ए-औहाम में फ़िक्र सदियों अकेली अकेली रही ज़ेहन सदियों अकेला अकेला मिला और अकेला अकेला भटकता रहा हर नए हर पुराने ज़माने में वो बे-ज़बां तीरगी में कभी और कभी चीख़ती धूप में चाँदनी में कभी ख़्वाब की उस की तक़दीर थी इक मुसलसल तलाश ख़ुद को ढूंढा किया हर फ़साने में वो बोझ से अपने उस की कमर झुक गई क़द मगर और कुछ और बढ़ता रहा ख़ैर-ओ-शर की कोई जंग हो ज़िंदगी का हो कोई जिहाद वो हमेशा हुआ सब से पहले शहीद सब से पहले वो सूली पे चढ़ता रहा जिन तक़ाज़ों ने उस को दिया था जनम उन की आग़ोश में फिर समाया न वो ख़ून में वेद गूंजे हुए और जबीं पर फ़रोज़ां अज़ां और सीने पे रक़्सां सलीब बे-झिझक सब के क़ाबू में आया न वो हाथ में उस के क्या था जो देता हमें सिर्फ़ इक कील उस कील का इक निशां नश्शा-ए-मय कोई चीज़ है इक घड़ी दो घड़ी एक रात और हासिल वही दर्द-ए-सर उस ने ज़िंदां में लेकिन पिया था जो ज़हर उठ के सीने से बैठा न इस का धुआं'

गाने के जरिए नेहरू की धर्मनिरपेक्ष छवि को दिखाया

जिस प्रकार कैफ़ी ने खूबसूरती से उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को ये बताते हुए उभरा है कि उनके खून में वेद गूंजे, माथे पर अज़ान चमकी और सीने पर सलीब नाची, वो केवल उन के जैसा उच्च कोटि का शायर ही कर सकता है. कैफ़ी के लिए वो समुन्दर में खड़े उस रौशनी के मीनार की तरह भी हैं जो सब को सही रास्ता दिखाता है. नेहरू की तुलना उस ईसा मसीह से भी की गई है जिसके हाथों में कील गाड़ कर सलीब पर चढ़ा दिया गया था. भले ही इस मसीहा के हाथ में कुछ नहीं पर इसके सलीब पर चढ़ने से इंसानियत जिंदा होती है. कहने और लिखने को तो और भी बहुत कुछ है पर कैफ़ी जैसे महान शायर ने ही इतना सब नेहरू की शान में लिख दिया है कि और कुछ कहना छोटा मुंह-बड़ी बात होगी.


(लेखक एक स्वतंत्र टिप्पणीकार और इतिहास के शोधकर्ता हैं)

http://hindi.firstpost.com/special/raagdari-rafi-singing-naushad-music-and-dilip-kumar-acting-unknown-story-of-a-brilliant-song-mk-67630.html, १९ नवम्बर २०१७. 

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